‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’
“ कृपया अपने जीवन मे सही मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु हस्तलिखित सम्पूर्ण जन्म कुंडली का निर्माण अवश्य करायेँ “
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" योग: चित्त-वृत्ति निरोध: "
योग शब्द 'युज' से निकला है, जिसका मतलब है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन । योग के द्वारा सर्वोच्च चेतना के साथ मन का मिलन संभव होता है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक तार में लाने का काम योग करता है।
योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है। जो कि दस हजार वर्ष पुरानी शैली है । ऋषि पतंजलि को योग के जनक के रूप में देखा जाता है । योग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर जीवन में नव-ऊर्जा का संचार करता है। योग आसन और मुद्राएं तन और मन दोनों को क्रियाशील बनाए रखती हैं। योग के नियमित अभ्यास से व्यक्ति की जीवन शैली में अदभुत परिवर्तन हुआ है। उन्होंने अपनी पुरानी बीमारियों से राहत का अनुभव किया है और अपने व्यवहार में परिवर्तन देखा है। व्यक्तियों ने स्वस्थ रहने, चिंता कम करके खुश रहने के बारे में अपना अनुभव बताया है। प्रसिद्ध संवाद, “योग याज्ञवल्क्य” में, जो कि (बृहदअरण्यक उपनिषद में वर्णित है), जिसमें बाबा याज्ञवल्क्य और शिष्य ब्रह्मवादी गार्गी के बीच कई साँस लेने सम्बन्धी व्यायाम, शरीर की सफाई के लिए आसन और ध्यान का उल्लेख है। गार्गी द्वारा छांदोग्य उपनिषद में भी योगासन के बारे में बात की गई है।
योग के प्रकार :
'ज्ञान योग' ( दर्शनशास्त्र )
'भक्ति योग' ( आनंद का पथ )
'कर्म योग' ( सुकर्म पथ )
राजयोग (अष्टांग योग )
राजयोग, जिसे आगे आठ भागों में बांटा गया है, राजयोग प्रणाली का आवश्यक मर्म, इन विभिन्न तरीकों को संतुलित और एकीकृत करने के लिए, योग आसन का अभ्यास है।
योग आसन और प्राणायाम का संयोग शरीर और मन के लिए, शुद्धि और आत्म अनुशासन का सशक्त माध्यम माना गया है। प्राणायाम के द्वारा हमें ध्यान का एक गहरा अनुभव प्राप्त करने में भी मदद मिलती है।